ईश्वर
ईश्वर
लेखक:- ई० एच० कार (E. H. CARR)
पुस्तक:- इतिहास क्या है
प्रकाशक:- ट्रिनिटी प्रेस
प्रकाशन वर्ष:- 2017
प्रकाशन स्थल:- नई दिल्ली।
पृष्ठ संख्या:- 77
"एक ईश्वर, एक नियम, एक तत्व और एक सुदूर दैवी घटना' या हेनरी एडम की खोज जिसका लक्ष्य 'कोई महान सामान्यीकरण होता है, जो आदमी की शिक्षित होने की बेकली को समाप्त कर देता है', यह सब आजकल किसी पुराने मजाक जैसा लगता है।"
संदर्भ:- दि एजुकेशन ऑफ हेनरी ऐडम्स (बोस्टन, 1928), पृष्ठ संख्या 224.
प्रिय पाठकों हम जानते हैं, कि आप लोग ईश्वर के विषय में पूर्ण या आंशिक रूप से अनजान है। हमारी वेबसाइट पर आपके आकर इस लेख को पढ़ने का उद्देश्य भी 'ईश्वर' (ईश्वर है या नहीं यह जानने की उत्सुकता) ही होगा। अतः तथ्यपरक शोध प्रस्तुत करते हुए हम आप लोगों के समक्ष एक सुप्रसिद्ध यूरोपियन इतिहासकार ई० एच० कार की पुस्तक इतिहास क्या है, में ईश्वर के विषय में लिखी गई कुछ पंक्तियों को आपके लिए प्रस्तुत किया है। इन पंक्तियों को पढ़ने के पश्चात बहुत हद तक आप लोगों को ईश्वर के रहस्य को जान सकते है।
इतिहास क्या है पुस्तक इतिहास में शोध कर रहे विद्यार्थियों/शोधार्थियों के लिए अति आवश्यक है। ई० एच० कार ने इस पुस्तक में बहुत ही आलोचनात्मक ढंग से यह बताया है, कि एक वास्तविक इतिहासकार कैसा होना चाहिए? और उसे इतिहास लिखते समय किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए । वे आगे बताते हैं कि एक वास्तविक इतिहासकार को अपनी व्यक्तिगत जाति, धर्म, देश से संबंध विच्छेद करते हुए संपूर्ण विश्व को अपना कार्यक्षेत्र मानते हुए धर्मनिरपेक्ष इतिहास ही लिखना चाहिए।
संपूर्ण अतीत ही इतिहास है, चाहे वह कैसा भी हो। इसलिए इतिहासकार को पूर्वाग्रह रहित होकर इतिहास लिखना चाहिए। हमारी आपसे गुजारिश है कि आप लोगों को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए, ताकि आप लोग अपने ज्ञान में वृद्धि कर सके और इतिहासकार बनने की आवश्यक विधियों को जान एवं समझ सके।
नीचे इस पुस्तक का लिंक उपलब्ध है, ताकि आप इस पुस्तक को खरीद कर स्वयं पढ़ सके या किसी इतिहास के विद्यार्थी को गिफ्ट कर सकें। हम भविष्य में भी इस प्रकार के इंडेक्स कार्ड आप लोगों के लिए बनाते रहेंगे ताकि आप लोगों के शोध की गुणवत्ता अच्छी हो ।
1. इतिहास क्या है (हिंदी संस्करण)
2. इतिहास क्या है (English Version)
3. The Education of Henry Adams (English Version)
नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।
सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।
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