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भूत

भूत

लेखक:- अल - बिरूनी
पुस्तक:- भारत: अल बिरुनी (क़िताब उल हिंद)
प्रकाशक:- नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया
प्रकाशन वर्ष:- 2013
प्रकाशन स्थल:- नई दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 36

भूत

"देवों के बाद पितरों अर्थात मृत पूर्वजों का वर्ग आता है और उनके बाद भूतों का यानी उन मनुष्यों का जिन्होंने स्वयं को अशरीरी प्राणी (देव) से संबंध कर लिया है और वे देवों और मनुष्यों के बीच में स्थित है।"

यह टॉपिक बड़ा विचित्र है। खास तौर पर नास्तिक लोगों के लिए या फिर उन लोगों के लिए जो भूतों के विषय में जानना चाहते हैं। कुछ धार्मिक विद्वान जैसे पंडित, पुजारी और मौलवी भूतों के अस्तित्व को स्वीकारते हैं, और उनको भगाने का दावा करते रहते हैं। आधुनिक समय की अपेक्षा पहले इन दावों की अधिक भरमार थी। क्योंकि उस वक्त आधुनिक चिकित्सा पद्धति एवं विज्ञान का इतना विस्तार नहीं हुआ था। यदि आप लोग ऐसे किसी विषय पर रिसर्च कर रहे हैं, जो भूत से संबंधित हो तो कृपया करके उपरोक्त पुस्तक को पढ़ने का कष्ट करें।

नीचे इस पुस्तक का लिंक उपलब्ध है ताकि आप इस पुस्तक को खरीद कर स्वयं पढ़ सके या किसी इतिहास के विद्यार्थी को गिफ्ट कर सकें। हम भविष्य में भी इस प्रकार के इंडेक्स कार्ड आप लोगों के लिए बनाते रहेंगे ताकि आप लोगों के शोध की गुणवत्ता अच्छी हो ।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

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