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हिप्पोलस

हिप्पोलस

लेखक:- डीएन झा
पुस्तक:- प्राचीन भारत: एक रूपरेखा
प्रकाशक:- मनोहर पब्लिशर्स एंड डिसटीब्यूटर्स
प्रकाशन वर्ष:- 1997
प्रकाशन स्थल:- नई दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 89

हिप्पोलस

पश्चिमी बंदरगाहों से जहाज समुद्र-मार्ग से होते हुए अदन अथवा साकोत्रा की ओर जाते थे और वहां से जहाज लाल सागर में प्रवेश करते थे। आधुनिक स्वेज के किसी निकटवर्ती स्थान से सिकंदरिया में सामान भेजा जाता था। सिकंदरिया भूमध्यसागरीय भू-भाग का एक मशहूर व्यापार केंद्र था। आवागमन के विकास से संबंधित एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि 46-47 ईसवी सन् के आसपास हिप्पोलस नामक एक यूनानी नाविक ने मानसून हवाओं का पता लगा लिया था। इससे अरब सागर से होकर मध्य सागरीय क्षेत्रों में जहाजों का आना जाना संभव हो गया और भारत तथा पश्चिमी एशिया के बंदरगाहों की दूरी कम हो गई।

हिप्पोलस

प्रारंभ में भारत तक आने के लिए यूरोपीय लोगों को काफी समय लगता था, लेकिन हिप्पोलस ने समुद्री हवाओं की खोज करने के पश्चात भारत तक दक्षिण पश्चिमी मानसून के द्वारा पहुंचने की यात्रा को सरल बना दिया। मानसून हवाओं की खोज के पश्चात यूरोप से भारत आने में लगने वाले समय की बचत हुई और श्रम की भी।

भारत के प्राचीन काल के इतिहास में हिप्पोलस और पेरिप्लस ऑफ़ द एरीथ्रिएनसी नामक पुस्तक बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन दोनों के माध्यम से हमें भारतीय व्यापार के स्वर्ण युग का पता चलता है। इस विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप संबंधित तथ्य के विषय में पढ़ सकते हैं।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

ब्राह्मी लिपि

ब्राह्मी लिपि लेखक:- डी. एन. झा पुस्तक:- प्राचीन भारत: एक रूपरेखा प्रकाशक:- मनोहर पब्लिशर्स एंड डिसटीब्यूटर्स प्रकाशन वर्ष:- 1997 प्रकाशन स्...

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