डॉ० सुन्यात सेन
डॉ० सुन्यात सेन
लेखक:- केटीएस सराओ
पुस्तक:- आधुनिक चीन का इतिहास
प्रकाशक:- हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय दिल्ली विश्वविद्यालय
प्रकाशन वर्ष:- 2015
प्रकाशन स्थल:- दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 91,92
चीन एक कृषि प्रधान देश था, जहां सुन्यात सेन ने जमीन के समान वितरण की बात की। इसके पीछे उनका उद्देश्य जमीन पर से अल्पसंख्यकों के एकाधिकार को समाप्त करना था। वह चाहते थे कि ग्रामीण खेती हरो और शहरी क्षेत्रों के निवासियों में भूमि का समान रूप में वितरण हो।
डॉक्टर सुनयात सेन को कौन नहीं जानता वह चीन के पहले प्रधानमंत्री हुए एवं चीन की क्रांति में उनकी मुख्य भूमिका रही। वह साम्यवादी दल के नेता थे एवं साम्यवाद को ही बहुसंख्यक वर्ग के लिए अच्छा बन गए थे चीन के अधिकांश पूंजी पतियों को एवं भूमि पतियों को उन्होंने मरवा दिया तथा वहां की सभी जमीन लोगों के बीच में बराबर बटवा दी ताकि लोगों के बीच की आर्थिक असमानता को दूर किया जा सके वहां की सभी जमीन राज्य के नियंत्रण में दी गई ताकि कोई भी व्यक्ति जरूरत से ज्यादा अमीर बन कर दूसरों को परेशान ना करें।
चीन के अलावा दुनिया के तमाम देशों में डॉक्टर सुन यात सेन को आदर्श मानकर उनका अनुसरण किया जाता है क्योंकि उन्होंने बहुसंख्यक मजदूरों के हित की बात कही एवं मजदूरों पर अत्याचार कर रहे पूंजीपतियों को नष्ट किया।
यदि आप लोग उपरोक्त तथ्यों के बारे में और अधिक जानकारी चाहते हैं अथवा चीन के ऊपर रिसर्च करना चाहते हैं तो यह पुस्तक आपके लिए अच्छी हो सकती है।
नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।
सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।
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