जियुतो
जियुतो
लेखक:- केटीएस सराओ
पुस्तक:- आधुनिक जापान का इतिहास
प्रकाशक:- हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय दिल्ली विश्वविद्यालय
प्रकाशन वर्ष:- 2015
प्रकाशन स्थल:- दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 61
1881 में स्थापित जियुतो प्रथम राष्ट्रीय राजनीतिक दल था। इसकी स्थापना के पीछे वह आंदोलन था, जिसे छोटे भूमि पतियों, किसानों और संपत्ति हीन वर्गों ने समुराई, बड़े भूमि पतियों और व्यापारियों के नेतृत्व में शुरू किया था। जियुतो का राजनैतिक दर्शन ई एच नॉर्मन के शब्दों में "समझौता वादी उदारवाद ऐसा उदारवाद था, जिसने मुख्यतया विभिन्न वर्गों के लिए प्रजातंत्र, जन अधिकारों और कार्य करने की स्वतंत्रता प्राप्ति की चेष्टा की।"
यह राजनीतिक दल जापान के समाज एवं संस्कृति को आधुनिक बनाने के लिए जिम्मेदार था। इस दल ने जापान के सामंतो को नकार दिया एवं जन सामान्य लोगों को संरक्षण दिया। सूक्ष्म दृष्टि डालने पर यह पता चलता है, कि गांधी जी का आंदोलन भी किसी हद तक इसी राजनीतिक दल की विचारधारा के अनुरूप था। इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं, कि गांधीजी ने इंग्लैंड में जापान के राजनीतिक दल का अध्ययन किया हो और उनके मन और मस्तिष्क पर इसका प्रभाव सकारात्मक पड़ा हो। बाद में उन्होंने अपने आंदोलनों में भी किसी राजनीतिक दल के विचारों एवं रणनीतियों को शामिल किया हो।
नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।
सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।
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