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आशिका

आशिका

लेखक:- हरीश चंद्र वर्मा
पुस्तक:- मध्यकालीन भारत
प्रकाशक:- हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय दिल्ली विश्वविद्यालय
प्रकाशन वर्ष:- 2009
प्रकाशन स्थल:- दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 516

आशिका

"आशिका का संबंध गुजरात के राजा कर्ण की पुत्री देवल रानी और अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र खान की प्रेम कथा से है। इसमें अलाउद्दीन की गुजरात तथा मालवा विजय के बारे में चर्चा की गई है। साथ ही उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों की स्थलाकृति का वर्णन भी किया है। इसमें वे मंगोलों द्वारा स्वयं अपने कैद किए जाने की भी चर्चा करते हैं।"

प्रिय शोधार्थियों यदि आप लोग अलाउद्दीन खिलजी पर रिसर्च कर रहे हैं, या गुजरात के राजा कर्ण और उनकी पुत्री देवल रानी पर अनुसंधान कर रहे हैं, तो आप लोगों को प्राथमिक स्त्रोत के रूप में आशिका नामक पुस्तक को पढ़ना चाहिए। इससे आपके शोध की प्रामाणिकता और प्रासंगिकता में चार चांद लग जाएंगे और आपके शोध की गुणवत्ता भी उत्तम होगी।

हम आपकी सुविधा के लिए इस प्रकार की जानकारी आप लोगों तक समय समय पर पहुंचाते रहते हैं। जिससे आप लोग अपने शोध को अच्छे प्रकार से कर सके एवं किसी भी भ्रामक तथ्य से बच सकें। किसी भी रिसर्च का उद्देश्य सत्य के यथार्थ बिंदु तक पहुंचना होता है। आपको किसी भी पूर्वाग्रह से बचते हुए अनुसंधान करना चाहिए।

नीचे इस पुस्तक का लिंक उपलब्ध है ताकि आप इस पुस्तक को खरीद कर स्वयं पढ़ सके या किसी इतिहास के विद्यार्थी को गिफ्ट कर सकें। हम भविष्य में भी इस प्रकार के इंडेक्स कार्ड आप लोगों के लिए बनाते रहेंगे ताकि आप लोगों के शोध की गुणवत्ता अच्छी हो ।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

अमीर खुसरो की कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें: -

किरान-उस-सादेन:-
अमीर खुसरो की सबसे पहली रचना किरान-उस-सादेन थी, जिसको उन्होंने 1289 ई. में लिखा था। यह ऐतिहासिक विषय पर आधारित है। इनकी इस रचना में बुगरा खां और उसके बेटे कैकुबाद का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसके अलावा उन्होंने इस रचना में मंगोलो के प्रति अपनी घृणा भी दिखाई है, तथा इसमें कई इमारतों, शाही दरबारों, इतिहासिक लोगो के जीवन के विषय के बारे में विस्तार से बताया है ।

मिफता-उल-फुतूह:-
अमीर खुसरो की 1291 में की गयी रचना के आधार पर उन्होंने अपनी इस किताब मिफता-उल-फुतूह की रचना की थी। इसमें इन्होने जलालुद्दीन खिलजीके बारे में विस्तार से बताया है। उनके सैन्य अभियानों, मालिक छज्जू का विद्रोह व उसका दमन तथा उनकी सभी विजयों के बारे में विस्तार से बताया है।

खजाइन-उल-फुतूह:-
इनकी इस रचना को तारीख-ए-अलाई के नाम से भी जाना जाता है। इनकी इस रचना में इन्होने अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के बारे में विस्तारपूर्वक बताया है। इसके अलावा उनके द्वारा गुजरात, चित्तौड़, मालवा और वारंगल पर विजय के बारे में पूर्ण रूप से विस्तारपूर्वक रूप से जानकारी बताई है। इसके अलावा उनकी इस रचना में मालिक काफूर के दक्कन अभियानों का भी विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है।

आशिका:-
यह पुस्तक एक प्रेम कहानी पर आधारित है। इसमें गुजरात के राजा करन की पुत्री देवलरानी और अलाउद्दीन के पुत्र खिज्रखां द्वारा इसमें विस्तार से बताया गया है। इसमें उन्होंने अल्लाउद्दीन खिलजी का गुजरात पर आक्रमण तथा उस पर विजय का आँखों देखा विवरण प्रस्तुत किया है।

नूह सिपिहर:-
अमीर खुसरो की इस पुस्तक में इन्होने हिंदुस्तान तथा हिन्दुस्तानियो के बारे में जानकारी दी है। इसके अलावा इस पुस्तक में मुबारकशाह के सभी भवन तथा जलवायु, सब्जियों, फलों, भाषाओं, दर्शनरम का बहुत ही अनोखा चित्रण किया है। यह हमारे लिए बेहतर है, क्योकि इसमें तत्कालीन सामजिक स्थिति का बड़ा ही जीवंत चित्रण देखने को मिलता है |

तुगलकनामा:-
यह भी ऐतिहासिक रचनाओं में से एक रचना है। तुग़लक़नामा उनकी आखरी रचना है, इस पुस्तक में उन्होंने खुशरोशाह के विरुद्ध गयासुद्दीन तुगलक की विजय का विवरण दिया है।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

ब्राह्मी लिपि

ब्राह्मी लिपि लेखक:- डी. एन. झा पुस्तक:- प्राचीन भारत: एक रूपरेखा प्रकाशक:- मनोहर पब्लिशर्स एंड डिसटीब्यूटर्स प्रकाशन वर्ष:- 1997 प्रकाशन स्...

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