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हिंदू मंदिर (झूठ में ईश्वर का घर माने जाने वाली जगह)

हिंदू मंदिर (झूठ में ईश्वर का घर माने जाने वाली जगह)

लेखक:- बिपिन चंद्र, मृदुला मुखर्जी, आदित्य मुखर्जी, क ० न ० पाणिकर और सुचेता महाजन
प्रकाशक:- हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय दिल्ली विश्वविद्यालय
प्रकाशन वर्ष:- 2001
प्रकाशन स्थल:- दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 230-231

हिंदू मंदिर (झूठ में ईश्वर का घर माने जाने वाली जगह)

हरिजनों पर अत्याचार के खिलाफ गांधीजी की आवाज दिन-ब-दिन प्रखर होती जा रही थी। वह कहते थे, "हरिजनों की सामाजिक हैसियत कुष्ठ रोगियों जैसी है। आर्थिक रूप से वे दरिद्र हैं। धार्मिक स्तर पर उनकी हालत यह है, कि उनके अपने ही हिंदू भाई उन्हें मंदिरों में जिन्हें हम झूठ मूट में ईश्वर का घर मानते हैं , घुसने नहीं देते। सार्वजनिक स्कूलों, सड़कों, अस्पतालों, कुओं इत्यादि का भी वे इस्तेमाल नहीं कर सकते। नगरों और गांवों में इन्हें ऐसी जगह बसाया जाता है जहां किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं है।"

प्रिय पाठको हम जानते हैं, कि जातिवाद एवं धर्म का मुद्दा एवं रिसर्च क्षेत्र हर किसी को अच्छा लगता है, क्योंकि कुछ लोग इन्हें सही तो कुछ गलत साबित करने का प्रयास करते रहते हैं। दलित लेखक एवं चिंतक इस विषय पर अधिक शोध किया करते हैं, क्योंकि वह लोग हिंदू धर्म को अपने शोषण का मूल मानते हैं। उनके पश्चात उदारवादी धर्मनिरपेक्ष विद्वान अर्थात साम्यवादी विचारधारा के समर्थक इस प्रकार के विषयों पर पूर्वाग्रह रहित अनुसंधान करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत करते रहें हैं। लेकिन कुछ तथाकथित राष्ट्रवादी लेखकों या इतिहासकारों के द्वारा उपरोक्त लोगों या विद्वानों के अनुसंधान को इस आधार पर चुनौती दी जाती रही है, कि जाति धर्म का एक अभिन्न हिस्सा है जिसे ईश्वर ने बनाया है, इसलिए हमें उसे स्वीकार लेना चाहिए।

लेकिन साम्यवादी विचारधारा के लोग जातिप्रथा एवं धर्म को समाज के लिए एक अभिशाप मानते हैं। इसलिए वे समय-समय पर धार्मिक सरकारों के शिकार भी बनते रहते हैं। यदि आप लोग भी जातिवाद एवं धर्म के मुद्दे पर रिसर्च कर रहे हैं या और अधिक जानकारी चाहते हैं, तो आप लोगों को इस पुस्तक के साथ-सथ उपरोक्त लेखक की अन्य पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए ताकि इस विषय पर आप की जानकारी बढ़ सके।

नीचे इस पुस्तक का लिंक उपलब्ध है ताकि आप इस पुस्तक को खरीद कर स्वयं पढ़ सके या किसी इतिहास के विद्यार्थी को गिफ्ट कर सकें। हम भविष्य में भी इस प्रकार के इंडेक्स कार्ड आप लोगों के लिए बनाते रहेंगे ताकि आप लोगों के शोध की गुणवत्ता अच्छी हो ।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

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