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माइक्रोलिथ

माइक्रोलिथ

लेखक:- के. कृष्ण रेड्डी
पुस्तक:- भारत का इतिहास
प्रकाशक:- मैक ग्रा हिल एजुकेशन (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड
प्रकाशन वर्ष:- 2017
प्रकाशन स्थल:- चेन्नई
पृष्ठ संख्या:- 25

माइक्रोलिथ

पत्थरों के बने हुए छोटे-छोटे काफी सुंदर औजार। आकार के आधार पर इन का विभाजन दो वर्गो में किया गया है- बिना ज्यामितीय आकार वाले जिनमें प्रस्तर, विदारक इत्यादि प्रमुख हैं', और ज्यामितीय आकार वाले त्रिभुजाकार, चतुर्भुजाकार आकार वाले औजार। साक्ष्यों के आधार पर यह पता चलता है, कि बिना ज्यामितीय आकार वाले औजार की तिथि 6000 ईसा पूर्व की है।

प्रागैतिहासिक काल की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें पाषाण के उपकरण पर निर्भर रहना पड़ता है। भित्ति चित्र भी इस शोध में हमारी सहायता करते हैं। वस्तुतः माइक्रोलिथ मध्य पुरापाषाण काल में प्रचलित थे। ये पत्थर के औजार थे, जिनको आदि मानव ने अपने दैनिक कार्यों एवं शिकार के लिए इस्तेमाल किया होगा। ये अक्सर वहां से अधिक मात्रा में पाए गए हैं, जहां आदिमानव गुफाओं में निवास करते थे। भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्यप्रदेश के भीमबेटका, उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर एवं यूरोप, अमेरिका आदि अनेक देशों से हमें माइक्रोलिथ प्राप्त होते हैं। माइक्रोलिथ की सहायता से हम प्रागैतिहासिक संस्कृति की विशेषता को समझ सकते हैं। यदि कोई भी विद्वान या स्कॉलर प्रागैतिहासिक काल पर रिसर्च कर रहा हो, तो उसके लिए इस पुस्तक को पढ़ना फायदेमंद होगा।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

ब्राह्मी लिपि

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