गोरा सिपाही
गोरा सिपाही
लेखक:- मोइनुद्दीन हसन
पुस्तक:- ग़दर 1857
प्रकाशक:- हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय दिल्ली विश्वविद्यालय
प्रकाशन वर्ष:- 2006
प्रकाशन स्थल:- दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 35
"कहते हैं शत्रु को कमजोर और लाचार मत समझो। छोटा शत्रु भी हानिकारक होता है। विद्रोह का पहला कारण लखनऊ की जब्ती था, दूसरे कारतूस केस ने इसे और प्रबल बना दिया। परंतु भारत में विद्रोह का आरंभ वास्तव में एक कमजोर शत्रु अर्थात रेजीमेंट नंबर 70 का वह गोरा सिपाही जो मुसलमान हो गया था और अब्दुल्ला बेग के नाम से जाना जाता था, जिसे सेना (ब्रिटिश सेना) से निकाल दिया गया था ने किया दिल्ली के घटना क्रम में उसी के उपायों का हाथ था।"
प्रिय पाठको आप लोगों का तथ्यों की दुनिया में निर्भीक स्वागत है। भारत के इतिहास में 1857 की क्रांति का एक अलग ही महत्व है। कोई इसे गदर कहता है, तो कोई सैनिक विद्रोह। कोई प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम तो कोई राजनीतिक विद्रोह। अलग-अलग विद्वानों एवं इतिहासकारों ने इसे अलग-अलग नाम दिये है।
बहरहाल अट्ठारह सौ सत्तावन के विद्रोह के पीछे के तमाम आंतरिक कारण उपलब्ध रहे है। एक सामान्य नागरिक उन कारणों को पढ़ता है, जो उसके सामने तत्कालीन इतिहासकारों अथवा पूर्वाग्रह युक्त पत्रकारों द्वारा प्रस्तुत किए जाते/जाते रहें हैं। इतिहास एक ऐसा विषय है, जिसे प्रत्येक सरकार अपनी विचारधारा के अनुसार प्रवर्तित करना चाहती है। इससे वह अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों की पूर्ति कर सकेगी।
1857 के विद्रोह में गोरा सिपाही की सबसे मुख्य भूमिका थी। लेकिन शायद ही कोई उनके बारे में जानता हो। क्योंकि आमजन को इतनी फुर्सत नहीं है, कि प्राथमिक स्त्रोतों को पढ़ने में अपने समय को खर्च कर सके। उनकी गलती भी नहीं है, क्योंकि महंगाई इतनी बढ़ चुकी है कि बिना काम के खाली बैठने का मतलब है, मौत को गले लगाना। लेकिन हम जैसे कुछ लोग आप लोगों तक वास्तविक तथ्यों को जमीन के अंदर से भी निकालकर लाने का प्रयास करते रहते हैं।
आखिर किस प्रकार एक छोटे से शत्रु ने अंग्रेजो के खिलाफ इतना बड़ा विद्रोह करवाने में अपनी बौद्धिक भूमिका का निर्वहन किया। और अधिक जानने के लिए आप तत्कालीन प्रत्यक्षदर्शी एवं इतिहासकार मोइनुद्दीन हसन द्वारा लिखित ग़दर 1857 नामक पुस्तक का अध्ययन कर सकते हैं।
नीचे इस पुस्तक का लिंक उपलब्ध है ताकि आप इस पुस्तक को खरीद कर स्वयं पढ़ सके या किसी इतिहास के विद्यार्थी को गिफ्ट कर सकें। हम भविष्य में भी इस प्रकार के इंडेक्स कार्ड आप लोगों के लिए बनाते रहेंगे ताकि आप लोगों के शोध की गुणवत्ता अच्छी हो ।
नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।
सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।
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