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पंथनिरपेक्षता

पंथनिरपेक्षता

लेखक:- डॉ० सुभाष कश्यप
प्रकाशक:- हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय दिल्ली विश्वविद्यालय
प्रकाशन वर्ष:- 2009
प्रकाशन स्थल:- दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 331

पंथनिरपेक्षता

"शब्दकोशों में सेक्युलरिज्म (धर्मनिरपेक्षता या पंथनिरपेक्षता) की परिभाषा 'ऐहलौकिक अथवा अनाध्यात्मिक ', 'धर्म से संबंध न रखने वाली', 'विश्वास की पद्धति जिसमें सभी प्रकार की धार्मिक आस्थाओं तथा उपासना को नकारा जाता है', 'अधार्मिक ' पद्धति आदि के रूप में की गई है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में सेक्युलरिज्म (पंथनिरपेक्षता) की परिभाषा 'उपयोगितावादी नैतिकता' के रूप में की गई है, जिसकी अभिकल्पना मानव जाति के भौतिक, आध्यात्मिक और नैतिक सुधार के लिए की गई हो और जो धर्म के आस्तिकता संबंधी पक्ष की न तो पुष्टि करता है न ही उसका खंडन करता है।"

पंथनिरपेक्षता

हम जानते हैं, कि हमारे द्वारा उपलब्ध कराए गए तथ्य कुछ लोगों को तो फायदा पहुंचाते है, लेकिन कुछ लोगों के लिए परेशानी का कारण बनते हैं। क्योंकि प्रत्येक इंसान का उद्देश्य अलग होता है। लेकिन हमारी वेबसाइट का उद्देश्य यह है, कि हम प्रत्येक पाठक एवं शोधार्थी के लिए इस प्रकार के पूर्वाग्रह रहित तथ्यों को प्रस्तुत करते रहे, जिनको पढ़ने के पश्चात वह अपने विषय की समीक्षा एवं विश्लेषण सही प्रकार से करने के साथ  - साथ यथार्थ निष्कर्ष पर पहुंचे।

नीचे इस पुस्तक का लिंक उपलब्ध है ताकि आप इस पुस्तक को खरीद कर स्वयं पढ़ सके या किसी इतिहास के विद्यार्थी को गिफ्ट कर सकें। हम भविष्य में भी इस प्रकार के इंडेक्स कार्ड आप लोगों के लिए बनाते रहेंगे ताकि आप लोगों के शोध की गुणवत्ता अच्छी हो ।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

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