Ads

आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति

आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति

लेखक:- बिपिन चंद्र
प्रकाशक:- ओरिएंट ब्लैकस्वॉन
प्रकाशन वर्ष:- 2016
प्रकाशन स्थल:- नई दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 30

"उच्च वर्गों की महिलाओं को घर से बाहर काम नहीं करना होता था। मगर कृषक औरतें आमतौर से खेतों में काम करती थी, और गरीब वर्गों की औरतें परिवार की आमदनी को पूरा करने के लिए बहुदा अपने घरों से बाहर जाकर काम करती थी।"

आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति

प्रिय पाठको हमेशा की भांति इस बार भी हम आप लोगों के लिए आधुनिक भारत में महिलाओं की दशा से संबंधित तथ्य लाए हैं। अगर आप लोग आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति पर शोध कर रहे हैं अथवा महिला अध्ययन के क्षेत्र में शोध कर रहे हैं, तो आप लोगों को यह पुस्तक फायदा पहुंचा सकती है।

अनेक देशों के समूह की भांति भारत देश का इतिहास बड़ा विचित्र रहा है। यहां पर हमें समस्त विश्व की अनेक भाषाओं, अनेक उपमहाद्वीपीय मनुष्यों, उनकी संस्कृतियों तथा विचारों के लोग मिल जाएंगे। इसीलिए कुछ लोगों का एक बड़ा समूह अपनी सांस्कृतिक विशेषता को संरक्षित रखने के लिए अपने राज्य अथवा क्षेत्र को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखना चाहते हैं। इसके लिए समय समय पर लोग आंदोलन करते रहते हैं। लेकिन भारत की तथाकथित राष्ट्रवादी सरकार बड़े अच्छे से ऐसे प्रत्येक आंदोलन का दमन कर देती है।किसी भी साधारण मनुष्य को सबसे बड़ा दुख इस बात का होता है, कि राष्ट्रवादी सरकारें राष्ट्र को सुरक्षित रखने के लिए समाज के तमाम लोगों को मौत के घाट उतार या उतरवा देती है। इसीलिए राष्ट्रवाद मानवता के लिए खतरा है, उदाहरण के लिए जर्मनी का नाजीवाद एवं इटली का फासीवाद पढ़ सकते हैं।

आधुनिक भारत में महिलाओं की स्थिति

नीचे इस पुस्तक का लिंक उपलब्ध है ताकि आप इस पुस्तक को खरीद कर स्वयं पढ़ सके या किसी इतिहास के विद्यार्थी को गिफ्ट कर सकें। हम भविष्य में भी इस प्रकार के इंडेक्स कार्ड आप लोगों के लिए बनाते रहेंगे ताकि आप लोगों के शोध की गुणवत्ता अच्छी हो ।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

ब्राह्मी लिपि

ब्राह्मी लिपि लेखक:- डी. एन. झा पुस्तक:- प्राचीन भारत: एक रूपरेखा प्रकाशक:- मनोहर पब्लिशर्स एंड डिसटीब्यूटर्स प्रकाशन वर्ष:- 1997 प्रकाशन स्...

Powered by Blogger.