Ads

सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर

लेखक:- सतीश चंद्र
पुस्तक:- मध्यकालीन भारत राजनीतिक समाज और संस्कृति (आठवीं से 17 वीं सदी तक)
प्रकाशक:- ओरियंट ब्लैकस्वान
प्रकाशन वर्ष:- 2007
प्रकाशन स्थल:- नई दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 60-61

सोमनाथ मंदिर

महमूद ने अपने आपको इस्लाम की शान में चार चांद लगाने वाला महान बुतशिकन (मूर्ति भंजक) के रूप में पेश किया। पंजाब से महमूद ने हर्ष की पुरानी राजधानी थानेश्वर पर हमला किया। लेकिन उसके सबसे दुस्साहसी हमले वे थे जो उसने कन्नौज के खिलाफ 1018 में और सोमनाथ (गुजरात) के खिलाफ 1025 में किए। यह बहुत ही धनी मंदिर था, और लाखों तीर्थ यात्रियों को अपनी ओर खींचता था। यह एक समृद्ध बंदरगाह भी था।

सोमनाथ का मंदिर मध्यकालीन भारत का एक विशाल मंदिर था। यह मंदिर आर्थिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों का केंद्र होने के साथ-साथ सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र भी रहा है। सोमनाथ के मंदिर में धन संपदा की कोई कमी नहीं थी, और वह पूर्ण रुप से धन-धान्य से परिपूर्ण था। ऐसा माना जाता है कि, अरब आक्रांता महमूद गजनी पश्चिम के अरबी देशों से होता हुआ भारत में लूटपाट के इरादे से आया था। गुजरात एक तटीय प्रदेश था। जिसके कारण गुजरात आने वाले विदेशी व्यापारियों को मंदिर के वैभव का ज्ञान था। मंदिर की अरब में काफी चर्चा होती थी। इसी कारण संपदा लूटने के लालच से महमूद गजनी भारत आकर आक्रमण किया करता था।

सोमनाथ मंदिर

मध्यकालीन भारत के इतिहास को जानने के लिए अथवा महमूद गजनी के बारे में जानने के लिए प्रस्तुत पुस्तक को पढ़कर अपने ज्ञान में वृद्धि कीजिए।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

ब्राह्मी लिपि

ब्राह्मी लिपि लेखक:- डी. एन. झा पुस्तक:- प्राचीन भारत: एक रूपरेखा प्रकाशक:- मनोहर पब्लिशर्स एंड डिसटीब्यूटर्स प्रकाशन वर्ष:- 1997 प्रकाशन स्...

Powered by Blogger.