जीनत महल
जीनत महल
लेखक:- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)
पुस्तक:- दिल्ली और उसका अंचल
प्रकाशक:- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
प्रकाशन वर्ष:- 2002
प्रकाशन स्थल:- दिल्ली
पृष्ठ संख्या:- 142
"हौज ख़ास के पश्चिम में लाल कुआं के बाजार में मेहराबयुक्त मंडपों और सड़क पर छज्जे दार गवाक्षों सहित एक भव्य प्रवेश द्वार वाला एक बड़ा आहता है। जीनत महल के नाम से विख्यात इसे बहादुर शाह द्वितीय (1837-1857) की प्रिय पत्नी जीनत महल ने सन, 1846 में बनवाया था। इसके प्रवेश द्वार की मेहराब पर बादशाह द्वारा रचित एक कविता अभिलिखित है जिसमें उसका उपनाम 'जफर'आया है।"
प्रिय पाठको हम जानते हैं, कि आप लोग हमारी वेबसाइट पर विभिन्न प्रकार के तथ्यों से संबंधित इंडेक्स कार्ड प्राप्त करते रहते हैं। आज इस इंडेक्स कार्ड में उल्लिखित जानकारी परवर्ती मुगलकलीन स्थापत्य कला एवं मुगल काल की स्थापत्य कला में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित हैं। मुगल वंश के प्रसिद्ध एवं अंतिम सम्राट बहादुर शाह द्वितीय को हम बहादुर शाह जफर के नाम से भी जानते हैं, और उनकी पत्नी के द्वारा बनाए गए जीनत महल के प्रवेश द्वार पर बहादुर शाह की एक कविता मैं उनका नाम जफर मालूम पड़ता है।
बहादुर शाह जफर एक उच्च कोटि के कवि एवं शायर थे। इसलिए कविता का उनसे पुराना रिश्ता था। मुगल काल के पतन का इतिहास जानने एवं बहादुर शाह जफर पर रिसर्च करने वाले शोधार्थियों के लिए इस प्रकार की सामग्री को जुटाना आवश्यक है।
नीचे इस पुस्तक का लिंक उपलब्ध है ताकि आप इस पुस्तक को खरीद कर स्वयं पढ़ सके या किसी इतिहास के विद्यार्थी को गिफ्ट कर सकें। हम भविष्य में भी इस प्रकार के इंडेक्स कार्ड आप लोगों के लिए बनाते रहेंगे ताकि आप लोगों के शोध की गुणवत्ता अच्छी हो ।
नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।
सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।
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