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पर्यटक

पर्यटक

लेखक:- सुरेश चंद्र बंसल
पुस्तक:- भारत में यात्रा एवं पर्यटन
प्रकाशक:- एच के प्रिंटर्स
प्रकाशन वर्ष:- 2007
प्रकाशन स्थल:- सहारनपुर
पृष्ठ संख्या:- 31

पर्यटक

पर्यटक एक दर्शक है, जो 24 घंटे से भी अधिक समय के लिए वहां ठहरता है। उसका उद्देश्य अपने अवकाश के क्षणों को मनोरंजन, स्वास्थ्य, अध्ययन, धर्म, खेलकूद तथा व्यापार सभा एवं गोष्ठियों में बिताने के लिए होता है। वह किसी भी प्रकार का पारिश्रमिक प्राप्त नहीं करता है। वह हमेशा एक नए स्थान के लिए यात्रा करता है।

पर्यटक

पर्यटन एक सुखद क्रिया होती है। यह प्राचीन काल से प्रचलित है। भिन्न-भिन्न समय भिन्न-भिन्न पर्यटक भिन्न - भिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लंबी - लंबी यात्रा किया करते थे। कुछ पर्यटक अपने क्षेत्र के आसपास तो कुछ पर्यटक अपने छेत्र से बहुत दूर यात्राएं करते थे। यात्राओं का उद्देश्य प्रत्येक पर्यटक के लिए अलग-अलग होता था।

पर्यटक

संसार में अलग-अलग प्रकार के पर्यटन है। कुछ मुख्य पर्यटन इस प्रकार है: -
  • घरेलू पर्यटन
  • विदेशी पर्यटन
  • राष्ट्रीय पर्यटन
  • अंतरराष्ट्रीय पर्यटन
  • खेल पर्यटन
  • व्यापार पर्यटन
  • क्रूज पर्यटन
  • साहसिक पर्यटन
  • पर्यावरणीय पर्यटन
  • स्पेस पर्यटन
  • शहरी पर्यटन
  • ग्रामीण पर्यटन
  • पारिस्थितिकी तंत्र पर्यटन
  • भौगोलिक पर्यटन
  • ऐतिहासिक पर्यटन
  • सांस्कृतिक पर्यटन
  • चिकित्सा पर्यटन
  • वैवाहिक पर्यटन
  • शिक्षा पर्यटन
  • स्वास्थ्य पर्यटन
कोई भी पर्यटक अपने देश के अंदर या अपने देश से बाहर पर्यटन हेतु जा सकता है, तथा अपने ज्ञान में वृद्धि करने के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य को भी उन्नत कर सकता है। पर्यटन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत ही अहम रोल निभाता है। पर्यटन से बहुत से लोगों को रोजगार भी मिलता है। वर्तमान में सबसे महंगा पर्यटन अंतरिक्ष पर्यटन है, जिसको अमेरिका की कंपनी अमेजन के मालिक जैफ बेजॉस और टेस्ला के मालिक एलन मस्क समर्थन दे रहे हैं।

पर्यटन के क्षेत्र की जानकारी लेने के लिए अथवा पर्यटन के क्षेत्र में रिसर्च करने के लिए आप उपरोक्त पुस्तकों पढ़ सकते हैं।

नोट:- अक्सर ऐसा देखा गया है, कि किसी भी सूचना के प्राथमिक एवं द्वितीय स्त्रोतों साथ कम या ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना रही है। वैसे स्त्रोतों में उपलब्ध कराई गई जानकारी लेखक के स्वयं के विचार भी हो सकते हैं अथवा तत्कालीन समय की सच्चाई भी, यह पता लगाना भी शोधार्थी का कार्य है। यह प्रत्येक शोधार्थी का कर्तव्य है, कि वह किसी भी स्त्रोत का प्रयोग करने से पहले उसकी बाह्य एवं आंतरिक आलोचना की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही यह समझने का प्रयास करें, कि वह जिस स्त्रोत का प्रयोग अपने शोध हेतु कर रहा है क्या वह सत्य है।

सामान्यत: ऐसा देखा गया है, कि मूल स्त्रोतों के साथ छेड़छाड़ कर दी जाती है/थी (उदाहरण के तौर पर ऋग्वेद में दसवां मंडल बाद में जोड़ा गया। ऐसा कुछ शोधार्थी एवं विद्वानों के द्वारा कहा जाता है)। ऐसा जानना इसलिए आवश्यक है, ताकि भविष्य के अनुसंधानकर्ताओं का बहुमूल्य समय व्यर्थ होने से बचाया जा सके।

ब्राह्मी लिपि

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